चन्दन के बलिदान पर गीत कवि हरीश सजल की…. सुनकर उत्साहित हो गए दर्शक
!!!पन्नाधाय का बलिदान!!!
ममता की कठिन परीक्षा थी पर देश बचे दृढ इच्छा थी !!
आँचल से लाल भले छूटे पर प्रेम की एक समीक्षा थी!!
हर व्यक्ति स्वार्थी है जग में यह कलंक मिटवाना था!!
निज राष्ट्र बड़ा है बेटों से इस परम्परा को लाना था!!
मैं तो आपका था अंश मान और स्वाभिमान;;
माते!सुत प्रेम तूने कैसे घटने दिया !!
राष्ट्र प्रेम की तरंग ह्रदय में उठा किन्तु ;;
स्वयं का प्रतिबिम्ब कैसे मिटने दिया!!
इक पल दूर नहीं करती थी अपने से;;
फिर टुकड़ों में मुझे कैसे बँटने दिया!!
मानता हूँ था जरूरी राष्ट्र स्वाभिमान किन्तु;;
शीश निज लाडले का कैसे कटने दिया!………………………………….राष्ट्र साधना में चन्दन सुन शीश तुम्हें कटवाना था!!
निज राष्ट्र बड़ा है बेटों से इस परम्परा को लाना था!!
वीरता की माटी वाली परिपाटी रहे बची;;
नई कोपलों में उस साज को बचाना था!!
बैरियों का वार कोई दुर्ग भेद पाये नहीं;;
राष्ट्र भी बचाने हेतु राज को बचाना था!!
अन्य लोग अपना सँवारते भविष्य यहाँ;;
किन्तु उस स्वप्न हेतु आज को बचाना था!!
बलिदान करके तुम्हारा सुनो पुत्र तब ;;
मुझको मेवाड़ियों की लाज को बचाना था!!.
…………………………राजपुत्र के जीवन को हर हाल में हमें बचाना था!!
निज राष्ट्र बड़ा है बेटों से इस परम्परा को लाना था!!
एक बार आजमा के देख लेती पुत्र शक्ति ;;
द्रोहियों के सारे अहंकार झाड़ देता मैं !!
और योद्धा बन जाके खुद युद्ध भूमि तक;;
भगवे की भव्यता को वहीं गाड़ देता मैं !!
देख बलशाली वेग घुटने वो टेक देते;;
शत्रु संग शत्रु दल को पछाड़ देता मैं!!
राजपुत्र और राजवंश को बचाने हेतु;;
कहती माँ द्रोहियों के वक्ष फाड़ देता मैं!!
मेवाड़ दुर्ग के कण-कण पर
तुमसे टीका लगवाना था !!
निज राष्ट्र बड़ा है बेटों से इस परम्परा को लाना था!!
वेग तो तु काल का भी सह सकता था लाल;;
कुँअर सा किन्तु दिनमान भी जरूरी था!!
देशद्रोहियों के छल को भी छल में बदल;;
राष्ट्र प्रेम वाला अभिमान जरूरी था!!
धर्म पे अधर्म की पताका न लहर जाये;;
शौर्य सिन्धु से उठा वो गान भी जरूरी था!!
उदय की जान स्वाभिमान निज राष्ट्रहेतु;;
सुन लाल तेरा बलिदान भी जरूरी था!!!
बलिदानी परिपाटी में इक नया पृष्ठ जुडवाना था !!
निज राष्ट्र बड़ा है बेटों से इस परम्परा को लाना था!!!
कोटि -कोटि है प्रणम्य आपकी माँ स्वामिभक्ति;;
स्वामिभक्ति राष्ट्र द्रोहियों को दिखलाऊँगा!!
नीतिगत राह से जो राजवंश भिन्न होगा;;
पन्नाधाय बलिदानी नीति सिखलाऊँगा!!
त्याग और बलिदान की परम्परा को लाने;;
कर्मवादिता का मूल्य मन्त्र बतलाऊँगा!!
पदवी के लिए त्यागता हूँ आज स्वर्ग लोक;;;
गर्व है कि पन्नाधाय पुत्र कहलाऊँगा!!!